कोविड-19 से संक्रमित पाये जाने के बाद घर पर पृथकवास में रह रहे जाने माने बांग्ला कवि शंख घोष का बुधवार की सुबह निधन हो गया। 89 वर्षीय कवि 14 अप्रैल को कोरोना संक्रमित हुए थे। उनके निधन की सूचना परिजनों ने दी। परिजनों व चिकित्सकों ने बताया कि शंख घोष कई रोगों से पीड़ित थे। कुछ महीने पहले ही स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें रवींद्रनाथ टैगोर की साहित्यिक विरासत को आगे बढ़ाने वाला रचनाकार माना जाता है। वह ‘आदिम लता – गुलमोमय’ और ‘मूर्ख बारो समझिक नै’ जैसी रचनाओं के लिए जाने जाते हैं। विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर मुखरता से अपनी बात रखने वाले शंख घोष को 2011 में पूद्म भूषण और 2016 में प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।
अपनी पुस्तक ‘बाबरेर प्रार्थना’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है। उनकी रचनाओं का अंग्रेजी और हिंदी समेत अन्य भाषाओं में अनुवाद हुआ है। उनका जन्म छह फरवरी 1932 को चंद्रपुर में हुआ था जो अब बांग्लादेश में है। वह अपने पीछे पत्नी प्रतिमा और दो बेटियों सेमांति औऱ श्राबंती को छोड़ गए हैं। साहित्यकार सुबोध सरकार ने कहा कि कोविड-19 ने ऐसे वक्त में घोष को छीन लिया जब उनकी सबसे अधिक जरूरत थी क्योंकि राज्य फासीवाद के खतरे का सामना कर रहा है।