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हजारीबाग मेडिकल कॉलेज का नाम अमर शहीद शेख भिखारी के नाम पर रखा जाना उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि:डॉ अब्दुल मन्नान

शहीद शेख भिखारी के नाम पर रखने के लिए झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को दी बधाई

अनवर हुसैन

जामताड़ा।हजारीबाग मेडिकल कॉलेज का नाम शहीद सेख भिखारी अंसारी के नाम करने से ऑल इंडिया मोमिन कांफ्रेंस के राष्ट्रीय सचिव डॉ अब्दुल मन्नान अंसारी ने प्रसन्नता व्यक्त की है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को बधाई दी है।कहा कि हजारीबाग मेडिकल कॉलेज का नाम सेख भिखारी के नाम करने उनकी सच्ची श्रद्धांजलि है।इस प्रकार देश के सभी राज्यो को भी अपने शहीदों के नाम मेडिकल, इंजीनियरिंग, यूनिवर्सिटी, तकनीकी प्रशिक्षण संस्थानों का नामकरण करने की अपील डॉ मन्नान ने की है।उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सराहना करते हुए कहा कि राज्य को एक बेहतरीन सीएम मिला है। सभी को साथ लेकर चलनेवाला व विकास करने वाला सीएम मिला है।

कौन थे शहीद शेख भिखारी

शेख भिखारी का जन्म सन् 1819 ई० में झारखंड के राँची जिला बुड़मो में हुआ था। अभी जंगे आजादी की शुरुआत ही हुई थी। उनके रगों में देशभक्ति का फड़कता खून अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए तड़फड़ा रहा था। वह जंगे आजादी सन् 1857 की क्रांति के शहीदों में सरे फेहरिस्त थे। 1857 की जंग ए आजादी में लड़नेवाले शेख भिखारी का जन्म 1831 ई में रांची जिला के होक्टे गांव में एक बुनकर अंसारी परिवार में हुआ था़। बचपन से वह अपने खानदानी पेशा, मोटे कपड़े तैयार करना और हाट बाजार में बेचकर अपने परिवार की परवरिश करते थे़। जब उनकी उम्र 20 वर्ष की हुई तो उन्होंने छोटानागपुर के महाराज के यहां नौकरी कर ली। परंतु कुछ ही दिनों के बाद उन्होंने राजा के दरबार में एक अच्छी मुकाम प्राप्त कर ली। बाद में बड़कागढ़ जगन्नाथपुर के राजा ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने उनको अपने यहां दीवान के पद पर रख लिया़। शेख भिखारी के जिम्मे में बड़कागढ़ की फौज का भार दे दिया गया। 1856 ई में जब अंगरेजों ने राजा महाराजाओं पर चढ़ाई करने का मनसूबा बनाया तो इसका अंदाजा हिंदुस्तान के राजा-महाराजाओं को होने लगा था।

अचानक अंगरेजों ने 1857 में चढ़ाई कर दी

जब इसकी भनक ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को मिली तो उन्होंने अपने वजीर पाण्डे गणपत राय, दीवान शेख भिखारी, टिकैत उमराँव सिंह से मशवरा किया।इन सभी ने अंगरेजों के खिलाफ मोरचा लेने की ठान ली और जगदीशपुर के बाबू कुँवर सिंह से पत्राचार किया।इसी बीच में शेख भिखारी ने बड़कागढ़ की फौज में रांची एवं चाईबासा के नौजवानों को भरती करना शुरू कर दिया।अचानक अंगरेजों ने 1857 में चढ़ाई कर दी।

विरोध में रामगढ़ के रेजिमेंट ने अपने अंगरेज अफसर को मार डाला। नादिर अली हवलदार और रामविजय सिपाही ने रामगढ़ रेजिमेंट छोड़ दिया और जगन्नाथपुर में शेख भिखारी की फौज में मिल गये। इस तरह जंगे आजादी की आग छोटानागपुर में फैल गयी। रांची, चाईबासा, संथाल परगना के जिलों से अंगरेज भाग खड़े हुए. इसी बीच अंगरेजों की फौज जनरल मैकडोना के नेतृत्व में रामगढ़ पहुंच गयी।चुट्टूपालू के पहाड़ के रास्ते से रांची आने लगे।

अंगरेजों का रास्ता रोक दिया

उनको रोकने के लिए शेख भिखारी, टिकैत उमराव सिंह अपनी फौज लेकर चुट्टूपालू पहाड़ी पहुंच गये और अंगरेजों का रास्ता रोक दिया।शेख भिखारी ने चुट्टूपालू की घाटी पार करनेवाला पुल तोड़ दिया और सड़क के पेड़ों को काटकर रास्ता जाम कर दिया।शेख भिखारी की फौज ने अंगरेजों पर गोलियों की बौछार कर अंगरेजों के छक्के छुड़ा दिये।यह लड़ाई कई दिनों तक चली।शेख भिखारी के पास गोलियां खत्म होने लगी तो शेख भिखारी ने अपनी फौज को पत्थर लुढ़काने का हुक्म दिया।

शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह को चुट्टूपहाड़ी के बरगद के पेड़ से लटका कर फांसी दे दी गयी

इससे अंगरेज फौजी कुचलकर मरने लगे. यह देखकर जनरल मैकडोन ने मुकामी लोगों को मिलाकर चुट्टूघाटी पहाड़ पर चढ़ने के लिए दूसरे रास्ते की जानकारी ली।फिर उस खुफिया रास्ते से चुट्टूघाटी पहाड़ पर चढ़ गये. अंगरेजों ने शेख भिखारी एवं टिकैत उमराव सिंह को 6 जनवरी 1858 को घेर कर गिरफ्तार कर लिया। 7 जनवरी 1858 को उसी जगह चुट्टूघाटी पर फौजी अदालत लगाकर मैकडोना ने शेख भिखारी और उनके साथी टिकैत उमरांव को फांसी का फैसला सुनाया. 8 जनवरी 1858 को आजादी शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह को चुट्टूपहाड़ी के बरगद के पेड़ से लटका कर फांसी दे दी गयी। आज भी वो बरगद का पेड़ जिंदा है। जहाँ हर साल शहीदों के याद में मेले लगाए जाते हैं।

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