- अभिभावकों में बच्चों की भविष्य को लेकर चिंता
अनवर हुसैन
जामताड़ा।कोरोना से लॉक डाउन में स्कूली बच्चों की पढ़ाई काफी प्रभावित हुई। कितनो भी सफाई दी जाय, इसकी भरपाई अब नही हो सकती। बच्चों की पढ़ाई नष्ट होता देख अभिभावक भी काफी चिंतित हैं। भले ही सरकार ऑनलाइन पढ़ाई की बात करें, लेकिन सभी बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई नही हो पायी। गरीबों के बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई नही मिल पायी। एंड्रॉइड मोबाइल की कमी के कारण जिले के 70 प्रतिशत बच्चों की पढ़ाई नही हो पायी। कोरोना को लेकर अभिभावकों में जहां डर है, वहीं मोबाइल की कमी से बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा नही मिलने का भी मलाल अभिभावकों में देखा जा रहा है।
जामताड़ा जिला में 27 प्रतिशत को ही मिला ऑनलाइन शिक्षा
सरकार के आदेशानुसार बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा दी जानी थी। इसके लिए जिले के सभी सीआरपी को व्हाट्सएप्प ग्रुप बनाकर बच्चों को जोड़ना था। लेकिन जामताड़ा जिला में मात्र 27 फीसदी बच्चों को ही ग्रुप में जोड़ा जा सका। इसका मुख्य कारण एंड्रॉइड मोबाइल की कमी को बताया जा रहा है। ऐसी स्थिति में बच्चों की भविष्य को लेकर अभिभावक काफी चिंतित हैं।
जिला के 1 लाख 20 हजार बच्चों में 40 हजार बच्चों को ग्रुप में जोड़ा गया है
जामताड़ा जिला में वर्ग एक से लेकर 9 वी तक कुल 1.20 लाख बच्चों में मात्र 40 हजार बच्चों को ही व्हाट्सएप्प ग्रुप में जोड़ा गया है। इतने बच्चों को ही ऑनलाइन शिक्षा मिली। शेष बच्चों को शिक्षा नही मिल पायी। ऐसे बच्चों जे अभिभावकों को बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता सता रही है। विभागीय लोगों के मुताबिक ऐसे बच्चों के अभिभावकों के पास एंड्रॉइड मोबाइल की कमी के कारण शिक्षा नही मिला।
प्रखंड वार बच्चों को ग्रुप में जोड़ा गया इस प्रकार से है
जामताड़ा जिला में 6 प्रखंड है। इन प्रखंड बच्चों को ग्रुप में कोड कर दी गई शिक्षा
फतेहपुर प्रखंड में सौ फीसदी स्कूल में ग्रुप बनाया गया, लेकिन 26 फीसदी छात्रों को ही जोड़ा गया। इसमे
- जामताड़ा प्रखंड में 99 फीसदी स्कूल के ग्रुप में 30 फीसदी बच्चें
- कर्माताड़ प्रखंड के 99 फीसदी स्कूल के 28 फीसदी बच्चें
- कुंडहित प्रखंड के 96 फीसदी स्कूल के 27 फीसदी बच्चें
- नाला प्रखंड के 96 फीसदी स्कूल के 23 फीसदी बच्चें तथा
- नारायनपुर प्रखंड के 95 फीसदी स्कूल के 31 फीसदी बच्चों को ही ऑनलाइन शिक्षा मिल पायी।
क्या कहते हैं अभिभावक
अभिभावक मोहन मंडल, संजय साह, बिपद मंडल, तन्मय माजी, सोहन लाल, अजय मंडल ने कहा कि बच्चों के अभिभावकों के पास इतने पैसे नही थे कि बच्चों को एंड्रॉइड मोबाइल खरीद पाते। कोरोना ने रोजगार छीना। लगभग तीन महीने कैसे दिन बीते, ये ऊपर वाले ही जानते हैं। ऐसी स्थिति में बच्चों को कहां से मोबाइल देते। सरकार जब स्कूल के शिक्षक, सीआरपी को टैब दे सकती है तो क्या बीपीएल बच्चों को एक मोबाइल नही दे सकती है। सरकार दूरदर्शन में पढ़ाई के नाम पर इतनी राशि खर्च कर दी। लेकिन सौचा की कितने लोगों के घर बिजली जाने के बाद टीवी चलने की व्यवस्था है।
क्या कहते है पदाधिकारी
एडीपीओ संजय कापरी कहते हैं कि एंड्रॉइड मोबाइल की कमी के कारण मात्र 27 फीसदी बच्चों के अभिभावकों को ही व्हाट्सएप्प ग्रुप में जोड़ा गया। शेष बच्चों को नही जोड़ा गया।