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 पितृ पक्ष शुरू, 16 दिन तक पितरों को तर्पण देने से लेकर उनके श्राद्ध कर्मकांड किया जाएगा

पितृ पक्ष शुरू हो गया है. आज से 16 दिन तक पितरों को तर्पण देने से लेकर उनके श्राद्ध कर्मकांड किया जाएगा. सामान्यतया पितृ पक्ष के बाद नवरात्रि शुरू हो जाती है लेकिन 19 साल बाद इस बार ऐसा संयोग बना है कि दाे अश्विन अधिकमास हाेने से नवरात्र श्राद्ध के एक महीने बाद शुरू हाेगा. पितृ प​क्ष की बात करें तो भारतवर्ष में 55 तीर्थस्थलों को पिंडदान के लिए महत्वपूर्ण माना गया है, जिनमें शास्त्रों के अनुसार, तीन तीर्थस्थलों को श्रेष्ठ की श्रेणी में रखा गया है. बिहार का गयाजी भी इन तीन श्रेष्ठ स्थलों में से एक है. दो अन्य स्थल बद्रीनाथ के पास ब्रह्मकपाल व हरिद्वार के पास नारायणी शिला हैं, जहां पिंडदान का विशेष महत्व है. बुधवार से पितृपक्ष शुरू है. पितृपक्ष पूर्वजों का पावन श्रद्धा पर्व है और गयाजी पितरों का मुक्तिधाम.पितृ पक्ष इस साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से {1 -2 सितंबर 2020} से शुरू होकर आश्विन के कृष्ण अमावस्या {17 सितंबर2020} तक मनाया जाएगा. 17 सितंबर 2020 को पितृ विसर्जन यानी सर्वपितृ अमावस्या है.

पितृपक्ष में पितरों काे तर्पण मोक्षधाम में ‘मुक्ति’

सनातन आर्य संस्कृति में श्राद्धकर्म का बड़ा महत्व है. मनुष्य के शरीर त्यागने के बाद उसके स्वर्गलाेक सिधारने व माेक्ष प्राप्ति के निमित्त श्रद्धा से किये गये कर्मकांड काे ‘श्राद्ध’ कहते हैं. इससे न केवल पितर, बल्कि कर्ता काे भी कर्मफल की प्राप्ति हाेती है और वह भी स्वर्गलाेक का अधिकारी हाे जाता है. गया में कर्मकांड सर्वमान्य है. श्राद्धं श्रद्धान्वित: कुर्वन् प्रीणयंत्यखिलं जगत्विष्णु पुराण का कथन है कि विश्व के अनेक धर्म क्षेत्राें में श्राद्ध के लिए गयाधाम का स्थान सर्वाेच्च है. यह माेक्षभूमि है. यहां श्राद्ध करनेवाले लोगों की अनेक पीढ़ियाें के पितर मुक्ति काे प्राप्त करते हैं. इसकी महिमा अप्रतिम है.

क्यों किया जाता है पिंडदान

यहां प्रतिवर्ष पितृपक्ष में आध्यात्मिक व सांस्कृतिक चेतना का संगम होता है़ इस दौरान भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों के भी श्रद्धालु अपने पितरों के लिए पिंडदान करते आते हैं. वायु पुराण में गयाजी में पिंडदान को लेकर रोचक कथा विख्यात है.

इसमें बताया गया है कि गयासुर ने भगवान विष्णु से वरदान मांगा कि जो भी उसके शरीर के ऊपर अवस्थित उनके चरणों पर पिंडदान करेगा, उसके पूर्वज सभी पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में वास करेंगे़ गया का नाम गयासुर नामक दैत्य के ही नाम पर पड़ा है, जिसे विष्णु और अन्य देवताओं ने मारा था. उसका सिर दो मील और शरीर छह मील तक फैला हुआ था. यह पौराणिक कथा (वायु पुराण, अध्याय 105) 10 मील के अंदर आनेवाले सभी धार्मिक केंद्रों को मान्यता देती है.

यदि हम आज के गया की पौराणिक गया से तुलना करें, तो देखेंगे कि पुराना गया, जिसे पुराण में गयासुर दैत्य के सिर पर स्थित कहा गया है, वही आज गया का धार्मिक क्षेत्र कहलाता है. गया-श्राद्ध के संबंध में सबसे पहला उल्लेख विष्णु-सूत्र व वायु-पुराण में है, जो ईस्वी शताब्दी के प्रथम चरण का माना जाता है. ऐसी धार्मिक मान्यता है कि गया-श्राद्ध से पितर भवसागर से पार हो जाते हैं और गदाधर के अनुग्रह से परमगति को प्राप्त होते हैं.

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