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सिमडेगा : जनता की आंखों से ओझल हुए जनप्रतिनिधि, जनता आक्रोशित

ग्राउंड जीरो से खास खबर

  • जनप्रतिनिधियों के अंडरग्राउंड होने से लोगों का नहीं हो रहा काम

आशीष शास्त्री/ब्रजेश कुमार

सिमडेगा । चुनाव जीतने के बाद नेता अपनी ही धुनते और वादों को भूल जाते हैं। जनता की कहाँ सुनते हैं। वैसे तो अक्सर सुना जाता है कि नेता वादा कर भुल जाते है। मगर ये महज सिर्फ कहने की बात नहीं आज हकीकत यही बन गयी है। खास कर बानो की जनता के लिए। जो वोट देने के बाद आज अपने को ठगा महसूस करती है। गाँव है समस्या है पर समाधान करने वाला कोई नहीं। जनप्रतिनिधियों से खफा ग्रामीण अब अपनी समस्या का खुद करने लगे है।


मामला है बानो के सोय पंचायत के केतुंगा, ओडिया सहित कई गांव की जनता को ये भी नहीं पता कि उनके विधायक और सांसद कौन हैं । और कैसे दिखते हैं। यहाँ के विधायक और सांसद जनता से कितने दूर हैं, इसका अंदाजा इसी से लगता है।जब ग्रामीणों से ये जनप्रतिनिधि इतने दूर हैं । तो जाहिर सी बात है कि इन ग्रामीणों की समस्या भी जनप्रतिनिधियों के सरोकार से कोसों दूर है। यहाँ के लोग जनप्रतिनिधियों के बारे में पूछने के साथ ही खासे नाराज नजर आने लगते है। ओडिया गांव की सोमारी देवी ने आक्रोश में कहा कि चुनाव के समय सभी नेता आकर हाथ फैलाते है और ढेरों वादे करते हैं लेकिन चुनाव में जीतने के बाद अपने वोटर को न तो पहचानते है और न हीं क्षेत्र की परेशानी से उनका कोई सरोकार होता है।

ख्याल होता नेताओं को तो जनता बेहाल न होती
ख्याल होता नेताओं को तो जनता बेहाल न होती। जनता के लिए नेता लड़ते है, चुनाव जीत गये तो कुछ नहीं करते है। बानो के सोय में ऐसा हीं कुछ मंज़र नजर आया। यहाँ के ग्रामीणो को बानो मुख्यालय और अस्पताल जाने में खासी परेशानी होती थी। गांव तो बानो मुख्यालय से महज चार किलोमीटर हीं दुर हैं।

लेकिन रास्ते में पड़ने वाला सोय नाला बरसात में उफनने लगता है। तब इस ग्रामीणो को सोय नाला में पुल नहीं रहने के कारण 15-17 किलोमीटर घुम कर मुख्यालय या अस्पताल जाना पड़ता है। कोई ज्यादा बिमार होता तो ग्रामीण कंधे पर मरीज को उठाकर नाले पार करते और जल्दी उसे अस्पताल पंहुचाने हैं।

ग्रामीणो ने कई बार गांव के मुखिया को एक पुलिया के लिए कहा लेकिन वे भी इनकी बातों को एक कान से सुन दुसरी कान से निकाल देते और गांव की समस्या यथावत बनी रही। तब थक हार कर ग्रामीणो ने यहाँ लकड़ी और बांस की सहायता से एक अदद काम चलाऊ पुलिया खुद बनाया। लेकिन यह लकड़ी की पुलिया लंबे समय तक तो टिकेगी नहीं। जब हम वहां पंहुचे तब ग्रामीणो ने अपने दिल की सारे दुख को हमारे साथ बांटते हुए कहा कि किसी तरह यहाँ एक पक्की पुलिया मिल जाएगी तो उनके आधे दुख बिसर जाएंगे।

सोय के मुखिया अटल बिलुंग  खुद अपना रोना रोने लगे

उस क्षेत्र के विधायक कोचे मुंडा से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन फोन नहीं लगा। वहीं पूर्व विधायक पौलुस सुरीन ने कहा है कि वे सता में नहीं हैं फिर भी वे वहां एक पुलिया का प्रयास जरूर करेंगे। सोय के मुखिया अटल बिलुंग से पुछा गया तो वे खुद अपना रोना रोने लगे उन्होंने कहा कि मेरी कोई सुनता ही नहीं कैसे हम कुछ करें। जब उनसे कहा गया कि प्रखंड विकास पदाधिकारी यादव बैठा ने लिखित रूप मांग रखने पर पुलिया देने का आश्वासन दिया है। तब वे बोले कि ठीक है मैं उन्हें आवेदन दुंगा। सता के जनप्रतिनिधियों द्वारा जनता की ये अनदेखी करना, और जनता द्वारा खुद अपनी समस्या हल कर देना कहीं आने वाले समय में चुनाव के समय नेताओं को ढेंगा न दिखा दे।

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