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कोरोना संकट- लॉकडाउन में कितने प्रवासी मजदूरों की जान गई? संसद में सरकार बोली- पता नहीं

  • सरकार का कहना है कि लॉकडाउन में कितने मजदूरों की मौत हुई है, ऐसा आंकड़ा उसके पास नहीं है

कोरोना महामारी के कारण टलता रहा संसद का मानसून सत्र आखिरकार सोमवार से शुरू हो गया. पहले दिन की कार्यवाही के बाद इसे मंगलवार 3 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया. कोविड-19 के प्रकोप का असर सदन की कार्यवाही में भी नजर आया. लोकसभा में विपक्ष के कुछ सांसदों की ओर से सोमवार को प्रवासी मजदूरों के मसले पर जानकारी मांगी गई. सरकार का कहना है कि लॉकडाउन में कितने मजदूरों की मौत हुई है, ऐसा आंकड़ा उसके पास नहीं है.

केंद्र सरकार ने संसद में सोमवार को कहा कि 68 दिन के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान जान गंवाने वाले प्रवासी श्रमिकों की संख्या पर कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. दरअसल, केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय से लोकसभा में जानकारी मांगी गई थी कि क्या सरकार को इस बात की जानकारी है कि कितने प्रवासी श्रमिकों ने अपने मूल निवास लौटने की कोशिश में जान गंवाई और क्या राज्यवार आंकड़ा मौजूद है.

क्या सरकार ने सभी राशनकार्ड धारकों को मुफ्त में राशन दिया है, अगर हां तो उसकी जानकारी दें

लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के मसले पर सवाल थे कि क्या सरकार प्रवासी मजदूरों के आंकड़े को पहचानने में गलती कर गई, क्या सरकार के पास ऐसा आंकड़ा है कि लॉकडाउन के दौरान कितने मजदूरों की मौत हुई है क्योंकि हजारों मजदूरों के मरने की बात सामने आई है. इसके अलावा सवाल पूछा गया कि क्या सरकार ने सभी राशनकार्ड धारकों को मुफ्त में राशन दिया है, अगर हां तो उसकी जानकारी दें.

सरकार का कहना है कि उनके पास ऐसा कोई डाटा नहीं है

इस पर संतोष कुमार गंगवार ने लिखित जवाब दिया, जिसमें कहा गया है कि भारत ने एक देश के रूप में केंद्र-राज्य सरकार, लोकल बॉडी ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ी है. मौत के आंकड़ों को लेकर सरकार का कहना है कि उनके पास ऐसा कोई डाटा नहीं है.

वहीं, राशन के मसले पर मंत्रालय की ओर से राज्यवार आंकड़ा उपलब्ध ना होने की बात कही है. लेकिन 80 करोड़ लोगों को पांच किलो अतिरिक्त चावल या गेहूं, एक किलो दाल नवंबर 2020 तक देने की बात कही गई है. इससे अलग सरकार की ओर से लॉकडाउन के वक्त गरीब कल्याण योजना, आत्मनिर्भर भारत पैकेज, ईपीएफ स्कीम जैसे लिए गए फैसलों की जानकारी दी गई है.

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