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झारखंड में अयोग्य पुलिसकर्मियों को दी गई आतंकवाद से निपटने की ट्रेनिंग

CAG रिपोर्ट में खुलासा

झारखंड में आतंकवाद के स्लीपर सेल (आतंकियों का वह दस्ता जो आम लोगों के बीच रहता है और निर्देश मिलने पर विविध घटनाओं को अंजाम देता है) से निपटने के लिए झारखंड पुलिस में आतंकवाद निरोधक दस्ता (झारखंड एटीएस) का गठन किया गया था। इस दस्ते में 30 साल की उम्र सीमा तक के सिपाही, 40 साल की उम्र सीमा तक के हवलदार व 45 साल की उम्र सीमा तक के अधिकारियों को रखना था।

इन पुलिसकर्मियों व अधिकारियों को काउंटर इंसर्जेंसी एंड एंटी टेररिज्म स्कूल (सीआइएटी) में प्रशिक्षण दिलाया जाना था। इससे इतर एटीएस में पुलिसकर्मियों व अधिकारियों को शामिल करने की कड़ी में निर्धारित उम्र का ख्याल नहीं रखा गया। इतना ही नहीं मुसाबनी, नेतरहाट व टेंडरग्राम स्थित प्रशिक्षण संस्थानों में जहां उन्हें आतंकवाद से निपटने का प्रशिक्षण दिया जाना था, वहां प्रशिक्षण सामग्री और प्रशिक्षकों की भी कमी थी।

और तो और कारतूसों की कमी तथा फायरिंग रेंज की अनुपलब्धता के कारण पुलिसकर्मियों को पर्याप्त लक्ष्याभ्यास तक नहीं कराया जा सका। नतीजतन प्रशिक्षण प्राप्त 35 फीसद पुलिसकर्मी अंतिम जांच परीक्षा पास ही नहीं कर सके। यही वजह रही कि नक्सल विरोधी अभियान में एटीएस को स्वतंत्र रूप से नहीं लगाया जा सका। रिपोर्ट के अनुसार 69 फीसद अभियान केवल केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, 25 फीसद संयुक्त रूप से राज्य बल एवं केंद्रीय बल तथा सिर्फ छह फीसद अभियान राज्य बल ने संचालित किया।

बगैर बुलेट प्रूफ जैकेट के नक्सलियों से लोहा ले रहा जगुआर, हथियार का भी टोटा

झारखंड में नक्सल प्रभावित क्षेत्र अधिक होने के चलते यहां झारखंड जगुआर (एसटीएफ) को नक्सलियों के विरुद्ध तैयार करने की कोशिश की गई। केंद्रीय अद्र्धसैनिक बल के साथ एसटीएफ के जवान नक्सलियों के विरुद्ध अभियान में शामिल होते रहे हैं। दुर्भाग्य यह कि एसटीएफ, जैप-6 व सैप वन बटालियन में बुलेट प्रूफ जैकेट है ही नहीं। सीएजी की रिपोर्ट यह भी बताती है कि राज्य में हथियार, कारतूस व गोला-बारूद की भी भारी कमी है।  आवश्यकता की तुलना में राज्य में 24 हजार 514 हथियार कम हैं।

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