- आने वाले दिनों में राज्य में 22 हजार पदों पर होने वाली नियुक्ति रुक जाएगी
रांची : झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की नियोजन नीति को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद कर दिया है। अदालत के इस आदेश का सीधा असर अभी 13 अधिसूचित जिलों में 2018-19 में नियुक्त हुए 8423 हाईस्कूल शिक्षकों पर पड़ेगा। इन सभी शिक्षकों की नौकरी चली जाएगी। नियोजन नीति रद होने से आने वाले दिनों में राज्य में 22 हजार पदों पर होने वाली नियुक्ति रुक जाएगी। शिक्षकों और पुलिसकर्मियों की बहाली प्रक्रिया पाइप लाइन में थी।
इसी तरह नई नियोजन नीति बनने तक तृतीय और चतुर्थ वर्ग की सभी नियुक्तियां प्रभावित होंगी। सोमवार को जस्टिस एचसी मिश्र, जस्टिस एस चंद्रशेखर व जस्टिस दीपक रोशन की पीठ ने सर्वसम्मति से सरकार की नियोजन नीति पर फैसला सुनाते हुए कहा कि उक्त नीति संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं हैं।
अदालत ने कहा कि इस नीति के कारण 13 अधिसूचित जिलों के सभी पद आरक्षित हो जा रहे हैं, जबकि संविधान के प्रावधानों के मुताबिक किसी भी हाल में कहीं भी नौकरियों में शत-प्रतिशत आरक्षण नहीं दिया जा सकता, इसलिए राज्य की नियोजन नीति से संबंधित अधिसूचना को निरस्त किया जाता है। इसके साथ ही अदालत ने राज्य के 13 अनुसूचित जिलों में इस नीति के तहत हुई नियुक्ति प्रक्रिया को रद करते हुए दोबारा विज्ञापन निकाल कर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया।
अदालत ने इस अवधि में 11 गैर अनुसूचित जिलों में हुई नियुक्ति प्रक्रिया और नियुक्तियों को बरकरार रखा है। इसके पीछे अदालत का तर्क है कि प्रार्थी ने नियोजन नीति और इसके तहत जारी विज्ञापन की शर्त को ही हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
गैर अधिसूचित जिलों में होने वाली नियुक्ति को किसी ने भी चुनौती नहीं दी है। इसलिए उसे रद नहीं किया जा रहा। इस मामले में सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने 21 अगस्त 2020 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
आरक्षण की अधिकतम सीमा है 50 प्रतिशत
अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने इंद्रा साहनी और आंध्रप्रदेश के चेबरू लीला प्रसाद राव के मामले में कहा है कि किसी भी हाल में शत-प्रतिशत पद आरक्षित नहीं किए जा सकते हैं। अदालत ने माना है कि अधिकतम 50 फीसद आरक्षण हो सकता है। ऐसे में नियोजन नीति के चलते 13 अधिसूचित जिलों में सभी पद 100 फीसद आरक्षित हो गए हैं, जो असंवैधानिक है। राज्य सरकार को इस तरह की नीति बनाने का अधिकार नहीं है। इसलिए नियोजन नीति को निरस्त किया जाता है।