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जामताड़ा के हिंदी साहित्यकारों की सेवा अविस्मरणीय : गाज़ी रहमतुल्लाह

हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष

अनवर हुसैन

जामताड़ा। हिंदी पत्रकारिता दिवस कल मनाया जाएगा। हिंदी पत्रकारिता से जामताड़ा अटूट संबंध रहा है। जामताड़ा जिला के कई नामचीन साहित्यकारों के लिए जामताड़ा की पहचान बनी है। जामताड़ा जिला के साहित्यकारों ने अपने बलबूते हिंदी साहित्य जगत को जीवित रखा है तथा उन्होंने निःस्वार्थ भाव से हिंदी की सेवा की है। ये बातें साहित्यकार परिषद के अध्यक्ष गाज़ी रहमतुल्लाह रहमत ने कही। उन्होंने कहा कि आर्थिक पिछड़ेपन के चलते यहां के साहित्यकारों ने कोई बड़ी साहित्यिक संस्था स्थापित नहीं कर सका। लेकिन हिंदी के विकास और संवर्धन में उनकी भूमिका सराहनीय रही है। यहां के रचनाकारों की रचनाएं देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। सभी को मालूम है कि किसी भी शहर और राज्य की सांस्कृतिक समृद्धता के सूत्रधार साहित्यकार ही होते हैं।अगर उन्हें उचित सम्मान और प्रोत्साहन नहीं मिले तो उस क्षेत्र में सांस्कृतिक दरिद्रता आ जाती है। उन्होंने कहा कि जो साहित्यकार समृद्ध घराने से होते हैं, वे अपनी रचनाओं का प्रकाशन खुद करा लेते हैं। लेकिन संथाल परगना का यह क्षेत्र शुरू से ही अति पिछड़ा रहा है। यहां के रचनाकार अपनी रचनाओं के प्रकाशन हेतु दूसरे जिले या राज्यों का ही सहारा लेते रहे हैं।

भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जन्म संथाल परगना के साहिबगंज में अपने नाना के घर में हुआ था
हमारे देश में पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन भारतेंदु युग से भी बहुत पहले शुरु हो चुका था, लेकिन भारतेंदु युग के बाद ही उनमें गति आई। हमें यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जन्म संथाल परगना के साहिबगंज में अपने नाना के घर में हुआ था । आज भी जामताड़ा क्षेत्र के साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र जी को याद करते हैं । प्रथम साप्ताहिक पत्र जो आम जनता के लिए निकाला गया वह था 1922 ईस्वी में झरिया के खान मालिक खोजा राम द्वारा प्रकाशित ‘झरिया मेल’। इसका प्रकाशन उन्होंने अंग्रेजी में किया, जिसका हिंदी अनुवाद जामताड़ा के रौनक बहादुर जी ने किया था।पहले पहल हमारे झारखंड क्षेत्र से अंग्रेजी और बांग्ला में ही पत्र पत्रिकाएं प्रकाशित होती थी।गाज़ी रहमत ने कहा कि झारखंड से हिंदी में प्रकाशित होने वाला प्रथम हिंदी पत्र ‘अंबुजा झारखंड’ है जो 1940 ईस्वी में प्रकाशित हुआ। इस पत्रिका में जामताड़ा जिले के एक दो साहित्यकारों की रचनाएं छपी। तदोपरांत 1941 ईस्वी में हजारीबाग से ‘बिजली’ नामक साप्ताहिक पत्र प्रफुल्ल चंद्र ओझा ‘मुक्त’ के संपादकत्व में प्रकाशित हुआ, जिसमें मिहीजाम एवं जामताड़ा के कुछ रचनाकारों की रचनाएं छपी । धनबाद से 1947 ईस्वी में दो पत्र एक साथ प्रकाशित हुए। पहला पत्र ‘कोलफील्ड टाइम्स’ अंग्रेजी में और दूसरा पत्र ‘आवाज’ हिंदी में। उन्होंने कहा कि ‘आवाज’ साप्ताहिक से दैनिक बने पत्र के संपादक बहुत दिनों तक जामताड़ा के जाने माने साहित्यकार जयदेव अंबष्ट मधुकर जी रहे । वे एक अच्छे गीतकार भी थे । उन्होंने काफी साहित्यिक सेवा की है। गाज़ी रहमत ने कहा कि मधुकर जी के छोटे भाई जय किशोर प्रसाद जी जो जामताड़ा कोर्ट में पेशकार थे।वह भी एक मंझे हुए साहित्यकार थे। उनका जन्म 1923 ईस्वी में हुआ था और सन 1945 ईस्वी में ही इन्हें नौकरी मिल गई ।कई वर्षों तक दुमका कलेक्ट्री में लिपिक रहे तथा जून 1984 में वे जामताड़ा से ही सेवानिवृत्त हुए। उनकी प्रसिद्ध काव्य कृति अग्निक्षरा और प्रवाल है । जामताड़ा जिला के साहित्यकारों का संबंध देश के प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त, दिनकर जी, बनारसीदास चतुर्वेदी, पंडित अंबिका प्रसाद वाजपेई , शिवपूजन जी, सुधांशु जी, सियारामशरण गुप्त जी एवं कवियों लेखकों से रहा है।

जामताड़ा से ‘ लहर’ नामक हिंदी पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया

कवि जयदेव अंबष्ट मधुकर जी ने जामताड़ा से ‘ लहर’ नामक हिंदी पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया जिसमें देश के प्रसिद्ध कवि, लेखक, रचनाकार एवं नवांकुर रचनाकारों की रचनाएं प्रकाशित हुआ करती थी।
अर्थाभाव के कारण कुछ वर्षों के उपरांत ही पत्रिका का प्रकाशन बंद हो गया।
गाज़ी रहमत ने कहा कि जब कृष्ण बल्लभ सहाय ने 1946 ईस्वी में हजारीबाग से ‘छोटा नागपुर’ नामक पत्र का प्रकाशन शुरू किया तो जामताड़ा के लेखकों ने उसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। लेकिन उस पत्र का भी प्रकाशन एक दशक के बाद बंद हो गया। उन्होंने कहा कि अब्दुल बारी द्वारा प्रकाशित ‘मजदूर ‘ नामक साप्ताहिक पत्र में भी जामताड़ा के रचनाकारों की रचनाएं छपती रही थी । यह पत्र सन 1942 से 1947 तक निकलता रहा।
जामताड़ा के साहित्यकारों की साहित्यिक सेवा 1951 में जमशेदपुर से प्रकाशित ‘खिलौना’ और 1952 में प्रकाशित ‘प्रति शिखा’ के लिए भी रही है। सन 1953 में ‘मधुवत ‘ नामक मासिक पत्र हजारीबाग से प्रकाशित हुआ, जिसके अधिकतर ग्राहक जामताड़ा के साहित्यकार व साहित्य प्रेमी थे। उन्होंने कहा कि 1956 ईस्वी में धनबाद से कांति मेहता ने ‘खान मजदूर’ नामक पत्र निकाला जिसमें जामताड़ा के रचनाकारों की भूमिका अच्छी खासी रही है।
सन 1947 ईस्वी में जन्मे सनत सरखेल चेतनानंद जी ने भी एक अच्छा हिंदी नाटक ‘बेकार मगर बेकार नहीं’ प्रकाशित कराया था।
गाजी रहमत ने कहा कि जामताड़ा जिला के तीन वयोवृद्ध रचनाकारों भूजेंद्र आरत,उमेश चंद्र सिंहा साधक एवं गजानन नरनोलिया की साहित्यिक सेवा अविस्मरणीय है।
भुजेंद्र आरत की प्रकाशित पुस्तकों में से विहान, आह, क्रांतिकारी गंगा सिंह, पहली चिंगारी, आने वाला कल, कगारों का मिलन, सोनू और गिलहरी एवं सास पुराण प्रमुख हैं। सन 1939 ईस्वी में जन्मे उपन्यासकार उमेश चंद्र सिंहा साधक का प्रथम उपन्यास ‘उलझे दामन’ इलाहाबाद के लता प्रकाशन से 1964 ईस्वी में और ‘इज्जत की चादर’ वाणी प्रकाशन पटना से 1967 में प्रकाशित हुआ।
सन 1939 में जन्मे गजानन नारनोलिया जी का प्रथम हिंदी बाल उपन्यास ‘ अनिल’ 1974 ईस्वी में प्रकाशित हुआ, जिसे उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत करने के लिए चयनित भी किया गया।
हिंदी साहित्य को समृद्ध करने के लिए जामताड़ा के साहित्यकारों ने सन 1975 ईस्वी में एक साहित्यिक मंच ‘राष्ट्रभाषा परिषद’ के नाम से बनाया और अच्छी साहित्यिक सेवा की लेकिन कुछ वर्षों के उपरांत लोग शिथिल हो गए।
फिर से साहित्यिक सेवा हेतु 12 जनवरी 2003 को एक नई साहित्यिक संस्था ‘साहित्यकार परिषद’ के नाम से बनाई गई जिसके तहत कई तरह के साहित्यिक आयोजन एवं प्रकाशन कार्य होते रहे हैं । उन्होंने कहा कि साहित्यकार परिषद जामताड़ा द्वारा सन् 2004 में गूलर के फूल, 2005 में महुआ और 2007 में पलाश नामक काव्य संकलन प्रकाशित किया गया, जिसमें जिले के लगभग 40 प्रसिद्ध रचनाकारों की प्रसिद्ध रचनाएं प्रकाशित की गई।
उन्होंने कहा कि उसकी अपनी ‘फुलवारी ‘ नामक शिशु गीत संग्रह पुस्तक सन 2004 में साहित्यकार परिषद प्रकाशन जामताड़ा द्वारा प्रकाशित है। गाज़ी रहमत ने कहा कि उसने हिंदी की सेवा हेतु स्वयं सन 2009 में ‘राष्ट्र प्रहरी ‘नामक त्रैमासिक हिंदी पत्रिका अपने संपादकत्त्व में जामताड़ा जिला मुख्यालय से आरंभ किया तदोपरांत 2018 में ‘झारखंड दीप’ नामक मासिक पत्र का प्रकाशन भी आरंभ किया जिसमें जामताड़ा जिला के अलावा भारत के अन्य राज्यों के साहित्यकारों की रचनाएं प्रकाशित की गई। अंत में उन्होंने कहा कि जामताड़ा जिला के साहित्यकारों ने हिंदी की खूब सेवा की है। अगर सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित हो जाए तो जामताड़ा पूरे झारखंड प्रदेश में हिंदी साहित्य का केंद्र बन सकता है।

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