1932 के पहले छड़वा डैम के पास लगने वाले मुहर्रम के मेला में खलीफा हुआ करते थे
हजारीबाग । वर्ष 1932 में पहली बार पबरा से रामनवमी जुलूस लेकर शहर पहुंचने वाले झंडा महतो अब शायद ही किसी को याद होंगे। झंडा महतो उर्फ भेखलाल महतो ने ही कटकमसांडी प्रखंड के पबरा गांव में नवमी का जुलूस हजारीबाग शहर लेकर आये थे। जुलूस को सफल बनाने के लिए उन्होंने पबरा और आसपास के गांव में डफली लेकर महीनों तक प्रचार किया था। तब जाकर 1932 में पबरा का जुलूस गाजे-बाजे और टीन पर छपे हनुमान जी के चित्र और एक लंबा झंडा लेकर लाठी, डंडा, फरसा, भाला के साथ रोमी, पेलावल, इंद्रपुरी चौक, पैगोडा. चौक, झंडा चौक होते हुए बड़का अखड़ा पहुंचा। वहां पर
अस्त्र शस्त्र का प्रदर्शन कर पूजा अर्चना कर पुनः उसी रास्ते से जुलूस वापस पबरा पहुंचा। इस कार्य में इनके मित्र स्व. जानकी महतो, स्व. बालदेव महतो, स्व. रामलाल महतो, बंशी महतो, सीताराम महतो ने काफी सहयोग किया। नवमी का जुलूस निकालने और हनुमान जी की भक्ति का जुनून भेखलाल महतो पर इस कदर चढ़ा कि इनको जब भी मौका मिलता डफली और झंडा लेकर पैदल गांव में रामनवमी का जुलूस निकालने के लिए प्रचार प्रसार करने के लिए निकल जाते थे। इनके इस जुनून को देखकर लोग इनको झंडा महतो कहने
लगे। इनका प्रचार प्रसार का ही नतीजा है कि आज दर्जनों गांव की झांकियां हजारीबाग शहर आती है। इनके गुजर जाने के बाद पबरा में जुलूस निकालने की जिम्मेवारी इनके बड़े पुत्र और शिक्षक स्व. दिनेश्वर प्रसाद मेहता ने निभायी। उसके बाद उनके छोटे पुत्र सुरेंद्र प्रसाद मेहता अभी तक जुलूस निकालते आ रहे है। 1932 के पहले छड़वा डैम के पास लगने वाला मुहर्रम का मेला के खलीफा हुआ करते थे भेखलाल महतो। साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतिमूर्ति भेखलाल महतो आज भूला दिए गए हैं।