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SC ने प्रशांत भूषण से कहा- कोई 100 अच्छाई करे तो भी उसे 10 गलती करने का लाइसेंस नहीं दिया जा सकता

नई दिल्ली । प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद सजा पर लंबी बहस हुई। इस दौरान प्रशांत भूषण ने महात्मा गांधी के बयान का हवाला देकर कहा कि न तो मुझे दया चाहिए और न ही मैं इसकी मांग कर रहा हूं। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण से कहा कि वो अपने बयान पर दोबारा विचार करें। और दो दिनों का वक्त दिया है। कोर्ट ने कहा कि कोई 100 अच्छाई करता है, फिर भी उसे 10 गलती करने की छूट नहीं दी जा सकती है। आइए आज की सुनवाई में किसने क्या कहा…

भूषण के वकील दुष्यंत दवे: हम मामले में रिव्यू दाखिल करना चाहते हैं। ऐसे में सजा पर फैसला टाला जाना चाहिए।

जस्टिस अरुण मिश्रा: हमारे फाइनल ऑर्डर के बाद रिव्यू दाखिल कर सकते हैं।

दवे: पुनर्विचार याचिका दायर के लिएहमारे पास 30 दिन का वक्त होता है।

सुप्रीम कोर्ट: लेकिन हमारे फाइनल ऑर्डर के बाद रिव्यू दाखिल करिए। हमारा ऑर्डर तभी पूरा होगा जब सजा पर फैसला होगा। आप संवैधानिक अदालत को आदेश पारित करने से रोक नहीं सकते। हम एक काम कर सकते हैं कि सजा तभी प्रभावी होगा जब रिव्यू पिटिशन पर फैसला आ जाएगा।

जस्टिस गवई: क्या आप ये इंप्रेशन नहीं दे रहे हैं कि आप कार्यवाही से बचना चाह रहे हैं।

दवे: और बेंच ये इंप्रेशन नहीं दे रहा है कि वह सबकुछ जस्टिस मिश्रा के रिटायरमेंट से पहले पूरा करना चाहता है।

दवे: कोई और बेंच सजा पर फैसला दे सकता है।

जस्टिस गवई: नहीं, हम आपके आग्रह को स्वीकार नहीं करते।

दवे: आसमान नहीं गिर जाएगा, अगर सजा पर बहस रिव्यू पिटिशन पर फैसला होने तक टाल दिया जाएगा। ये जरूरी नहीं है कि यही बेंच फैसला दे।

जस्टिस अरुण मिश्रा: अगर मैं रिटायर न हो रहा होता तो क्या आप ये दलील देते कि सजा पर फैसला कोई और बेंच दे।

दवे: व्यापक जनहित में फैसला टाला जाना चाहिए।

जस्टिस गवई: लेकिन राजीव धवन ने 17 अगस्त को कहा था कि हम रिव्यू पिटिशन दाखिल करने वाले हैं।

दवे: वह रेडी है लेकिन अभी फाइल क्यों करें हमारे पास 30 दिन का वक्त है।

धवन: ठीक है हम सजा पर बहस टालने के लिए नहीं कहेंगे लेकिन इस मामले में जज का ऑर्डर फाइनल है पर प्रशांत भूषण अपना जवाब देना चाहते हैं।

प्रशांत भूषण: मेरे ट्वीट जिनके आधार पर अदालत की अवमानना का मामला माना गया है दरअसल वो मेरी ड्यूटी हैं, इससे ज्यादा कुछ नही है।इसे संस्थानों को बेहतर बनाये जाने के प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए था। मैंने जो भी लिखा है वह मेरा व्यक्तिगत विचार है। अपना विचार रखना मेरा अधिकार है। महात्मा गांधी के बयान का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि न उन्हें दया चाहिए न वो इसकी मांग कर रहे हैं। वो कोई उदारता भी नहीं चाह रहे। कोर्ट जो भी सजा देगा वो उसे सहर्ष स्वीकार करने को तैयार हैं।

धवन: प्रशांत भूषण ने 2जी से लेकर कोल ब्लॉक आदि में महत्वपूर्ण पीआईएल दाखिल की और फ्री में केस लड़ा। आपको देखना चाहिए कि सामने कौन से वकील हैं।

जस्टिस मिश्रा: हम फेयर क्रिटिसिजम के खिलाफ नहीं हैं लेकिन हमें समझना होगा कि संतुलन जरूरी है। अगर हम संतुलन रखना चाहते हैं तो सामने भी संतुलन होना चाहिए। सभी के लिए एहतियात जरूरी है। एक लक्ष्मण रेखा है जिसे पार नहीं करना चाहिए। उसे पार क्यों किया? अपने लोकहित में कई काम किए हैं लेकिन आप समझिए कि हमने अपने 24 साल के करियर में किसी को कंटेप्ट नहीं किया। ये पहला ऑर्डर है।

धवन: कैसे दो ट्वीट्स से कोर्ट का कद घटा दिया? यह समझ से परे है कि इसने संस्थान को ध्वस्त किया है।

जस्टिस मिश्रा: अभिव्यक्ति की आजादी पूर्ण नहीं है, यह समझना होगा। यह बताना चाहिए कि एक सीमा तय की गई है। तमाम एक्टिविस्ट बोलें लेकिन सीमा में। अब हम प्रशांत को दोषी मान चुके हैं। लक्ष्मण रेखा पार करने की इजाजत किसी को नहीं देंगे।

जस्टिस गवई: क्या प्रशांत भूषण अपने बयान पर पुनर्विचार चाहते हैं?

भूषण: नहीं, वह कोई विचार दोबारा नहीं करना चाहते।

जस्टिस मिश्रा: आप सोच लें अन्यथा बाद में ये नहीं कहा जाए कि मौका नहीं दिया गया।

भूषण: मैं कोर्ट के कहने पर विचार कर सकता हूं लेकिन अपने बयान का आमूल चूल परिवर्तन नहीं चाहते।

जस्टिस मिश्रा: आप सोच लें।

भूषण: हम अपने वकील से बात विचार करना चाहते हैं।

जस्टिस मिश्रा: हम फैसले में देरी नहीं चाहते। आप दो-चार दिन में विचार कर लें।

धवन: भूषण के बयान को जस्टिस लोढ़ा, जस्टिस जोसेफ और जस्टिस शाह ने सपोर्ट किया है। कई लोगों ने उन्हें सपोर्ट किया है तो क्या इन सबको कंटेप्ट किया जाएगा। सभी ने कहा कि गलत प्रक्रिया का चयन किया गया है।

जस्टिस मिश्रा: हमें उन बातों में जाने के लिए न कहें। हाल में बेटी को समान अधिकार देने का फैसला किया और सबने देखा, सहयोग किया।

अटॉर्नी जनरल: हम आग्रह करते हैैं कि आप सजा न दें।

जस्टिस मिश्रा: ऑफ मेरिट पर बहस न करें। क्या हमने बिना प्रक्रिया किसी को दोषी माना है? आपसे आग्रह है कि आप ऐसा न कहें। आप पहले बयान देखें कि प्रशांत भूषण ने अपने बचाव में क्या बयान दिया है। यह बयान और ज्यादा बढ़ावा देता है। आप पढ़िये और बताइए कि क्या किया जाए। आप अटॉर्नी जनरल के तौर पर कोर्ट को सलाह दें।

धवन: तीन रिटायर जज ने भी प्रक्रिया पर सवाल उठाया है।

जस्टिस मिश्रा: हमें उन बयानों पर न ले जाएं। ये सही नहीं है। हम भी कुछ कह सकते हैं लेकिन हम बोलना नहीं चाहते।

धवन: क्यों दो अलग-अलग पैमाना तैयार किया गया? एक मामले में माफीनामा स्वीकार किया गया और दूसरे में माफीनामा नहीं था लेकिन बयान के बोनाफाइडी को देखा जाना चाहिए ।

जस्टिस मिश्रा: क्या आप अपने बयान पर दोबारा विचार करेंगे? हम फिर विचार करेंगे कि अभिव्यक्ति गलती से हुई है या नहीं। किसी को सजा देने का उद्देश्य उस व्यक्ति से नहीं है बल्कि दूसरो को सबक मिले, यह उद्देश्य है। सजा सिर्फ किसी व्यक्ति को नहीं दी जाती बल्कि सबक होता है सबके लिए। पृथ्वी पर कोई ऐसा नहीं है कि जिससे गलती न हो। लेकिन महत्वूपर्ण ये है कि गलती का अहसास होना चाहिए। हम ऐसे नहीं है कि किसी को यूं ही सजा दे दें।

धवन: लेकिन रिटायर जज के खिलाफ बयान कंटेप्ट नहीं होता।

जस्टिस मिश्रा: एक शख्स को लक्ष्मण रेखा का हमेशा भान होना चाहिए। कंटेप्ट गंभीर मसला है। अगर कोई गलती करने के बाद उसे स्वीकार करता है तो हम भी बेहद उदार हैं। आप पुनर्विचार करें। कोई 100 अच्छाई करता है लेकिन इससे उसे 10 गलती का लाइसेंस नहीं दिया जा सकता।

अटॉर्नी जनरल: हमारे पास ऐसे 5 जजों का उदाहरण है जिन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में लोकतंत्र की कमी है। 9 जजों ने करप्शन का सवाल उठाया था।

जस्टिस मिश्रा: हम फैसले के रिव्यू पर नहीं बैठे हैं, हम दोषी मान चुके हैं।

जस्टिस गवई: बार और बेंच में आपसी सामंजस्य होना जरूरी है। भूषण को दो दिन का वक्त दिया जाता है कि वह अपने बयान पर दोबारा विचार करें। सुनवाई सोमवार को हो सकती है।

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